Monday, April 11, 2011

जो हुआ अच्छा हुआ...

कुछ भी यूँ अचानक न हुआ,
सब कुछ था सोचा समझा हुआ,
देख रहा था सब अपनी आँखों से,
पर था बहुत डरा और सहमा हुआ,
कोशिश की थी मैंने समझने की,
पर था सब कुछ बहुत उलझा हुआ,
सुलझाने आये लोग सब अपने,
कोई भी न रहा था छुटा हुआ,
सबने कोशिश की अपनी तरफ से,
मैं भी था पूरी तरह लगा हुआ,
इक वो ही थे बेफिक्र से खोये हुए,
जैसा बादल बरसा हो सूखा हुआ,
समझ रहे थे वो भी की कुछ बात है,
पर दिखा रहे थे जैसे कुछ भी न हुआ,
हँस तो हम भी रहे थे ऊपर से,
पर दिल तो था अपना भी टूटा हुआ,
सब कहते थे आ आ के मुझसे,
तेरे साथ जो हुआ अच्छा न हुआ,
मैं खुद को समझा रहा हूँ अब,
क्या हुआ जो इतना कुछ हुआ,
आज भी मिल जायें तो कहूँगा,
कोई बात नहीं जो हुआ अच्छा हुआ...

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