Wednesday, June 1, 2011

पास है बस आस !

ज्यादा कुछ तो कहने को नहीं है मेरे पास,
पर अब भी बची है माफ़ी मिलने की आस !

सोचता हूँ उड़ कर आज आजाऊं मैं तेरे पास,
नहीं होता इंतज़ार, मिलने की है बहुत आस !

कुछ भी नहीं है तुझे देने के लिए मेरे पास,
बस थोड़ी खुशियाँ दे पाऊंगा ऐसी है आस !

मुझे लगता तो है की नहीं आओगी मेरे पास,
फिर भी तेरे लौटने की जगा राखी है आस !

तेरी यादों के सिवा कुछ भी नहीं है मेरे पास,
तेरे प्यार पे ऐतबार है, तभी तो है ये आस !

कहते है जब कुछ भी ना हो तुम्हारे पास,
फिर भी सब है अगर थोड़ी सी भी है आस !

2 comments:

  1. क्या बात है. भावों के अद्भुत उद्गार.

    ReplyDelete
  2. संजय भास्कर जी: बहुत बहुत धन्यवाद !
    आपने रचना को समझा उसके भावों को पढ़ा और महसूस किया !
    ऐसे पाठक बहुत ही कम होते हैं ! बहुत बहुत शुक्रिया...

    ReplyDelete