Monday, October 17, 2011

अनायास ही...


अनायास ही,
तेरी ओर खिंचा सा चला आता हूँ,
जो मैं तुझसे दूर जाना चाहता हूँ,

अनायास ही,
तेरी सुनहरी लटों में उलझ जाता हूँ,
जो मैं थोडा सा खुद को सुलझाता हूँ,

अनायास ही,
नयनों को तेरी प्रतीक्षा में सताता हूँ,
जो मैं इन्हें तेरा मोहक रूप बताता हूँ,

अनायास ही,
 कर्णों में अपने तेरे गीतों को सुन पाता हूँ,
जो मैं तेरी याद में कभी कुछ गुनगुनाता हूँ,

अनायास ही,
मैं तेरी सुमधुर महक में खो जाता हूँ,
जो मैं बाग़ में फूलों से मिलने आता हूँ,

अनायास ही,
मैं खुद को तेरी ही बारे में लिखते पाया हूँ,
शायद मैं कुछ भी नहीं, तेरा ही साया हूँ !!