Wednesday, June 29, 2011

I Miss The College

Dedicated to my friends !


When i say i miss the college it does not mean that
i miss the college building or college staff.
but i miss the feelings i felt in college days,
i miss my Pals i met in college,
i miss the time i sPent in college with them.
Yeah its all because i love my friends i miss my college.
i miss the day when i first saw u, talked to u,
i miss the day when we became friends,
i miss those days when we used to laugh together,
i miss those classes, we bunked just becoz we did not want to leave each other,
i mostly miss those mornings when we used to awake each other with a lovely good morning call starting with RadheY RadheY…
i miss that killing time before we could meet,
i miss the time i made u wait and then to convince u,
i miss that cross where i’ve smiled as our eyes met before us,
i miss those road on which i was with you PeoPle, we were all together,
i miss those dhabas, a Place full of gems of my life, i miss that 'bye’,
i miss those stairs we walked uP together,
i miss the lunch Period and library, where we ate, we used to meet,
i miss those evening i had to wait for next morning,
i miss the college, it just means “i miss you, but not the college”
i wish i could tell you that i don’t miss the college but you PeoPle…

Monday, June 27, 2011

कुछ उटपटांग...

तुम याद आते रहो,
मैं भूलता रहूँगा,

तुम चाहे खामोश रहो,
मैं तो सुनता रहूँगा,

तुम रुलाते रहो,
मैं हँसता रहूँगा,

तुम रुसवा ही रहो,
मैं मनाता रहूँगा,

तुम वापस न भी आओ,
मैं तो यहीं रुका रहूँगा !

तुम मिटाते रहो,
मैं लिखता रहूँगा !



उनकी तस्वीर में सुकून है, अपनी तकदीर में सुकून है...
उनकी बाहों में सुकून है, अपनी राहों में सुकून है..
उनकी छाँव में सुकून है, अपने गाँव में सुकून है..
उनकी याद में सुकून है, अपनी फ़रियाद में सुकून है..



हमे उनसे प्यार होता तो इक बात थी,
मेरा दिल तो उनकी ज़ालिम अदा पे आया था,



काश थोडा डरना भी सीखा होता,
तो इश्क हमने भी न किया होता !



जिस दिन से तुझे चाहा है,
तेरी रुसवाई से भी चाहत हो गयी !



तूफान में भी दिया लेकर चलें हैं हम,
दिल को इस कदर लेकर चले हैं हम !



कहने को तो आसन हो गया की वो बेवफा हो गए,
खुद में नहीं देखा अब तक की वो ऐसे क्यूँ हो गए !



आज तो यहाँ ओलों की बारिश होगी,
कल उनकी आँखों से पानी की हुई होगी !



कुछ ज़माने की साजिश सी लगती है,
तेरी बातों में अब भी कशिश लगती है,
यूँ न जा सकते थे तुम हमे मार के,
तेरी कुछ तो जायज़ मजबूरी लगती है !



आये थे खंजर लेकर मुझे मारने वो,
मर भी गए हम बेनकाब जो आये वो,



वादा तो साथ देने का मैं भी किया था,
जा रहे थे तो हमने जाने क्यूँ दिया था !



उनके कातिल होने का गुनाह उनका नहीं,
उनकी अदाओं का दीवाना बस ज़माना ही नहीं,
या खुदा मारने का अच्छा तरीका है इश्क,
मर जाये कोई आवाज़ भी नहीं और दर्द भी नहीं !

(Special Thanks to Harshadkumar Somaiya Ji)



न तुझे छोड़ सकते हैं तेरे हो भी नही सकते
ये कैसी बेबसी है हम रो भी नहीं सकते
ये कैसा दर्द हैं हमें पल पल तडपाये रखता हैं
तेरी याद आती है तो फिर सो भी नहीं सकती
छुपा सकते हैं न दिखा सकते हैं लोगों को
कुछ ऐसे दाग हैं दिल पर जिन्हें हम धो भी नही सकते!
-दीपिका ठाकोर जी द्वारा !

Think Positive ! Jai Hind !

Jai Hind !
Spread the Voice !

Friday, June 24, 2011

when I be at beach I miss my world.

When I see an old lady,
I miss my Dadi Maa,
I wish I could touch her feet and say "Don't worry, I am fine.".



When I see little kids Playing,
I miss Vrinda & Varun,
I wish I could hug them and Play with them.

When I see two sisters,
 I miss Choti di & Badi Di,
I wish I could tell them how sPecial they are for me and how I NjoYed my childhood because of them.

When I see a couPle walking together, sometime fighting,
I miss Mum & Paa,I wish I could tell them how lucky I am to have them and want to be with them.

When I see a family,
 I miss my home,
I wish I could say thanks to them for their care and go on a triP with them.

When I see a grouP of friends,
I miss my friends,
I wish I could have them there and do the same masti again. 

When I see a young couple,
I miss her,
I wish I could have her back.

Wednesday, June 22, 2011

सागर और मैं !


सागर किनारे खड़ा मैं सोचता रहता हूँ, कभी खुद को देखता हूँ कभी उसे देखता रहता हूँ!
कितने मिलते जुलते हैं न दोनों, एक ही जैसे से लगते हैं!
दूर दूर तक कितना वीराना है, ये सागर भी और मेरा जीवन भी...
कहीं कहीं मछुआरे दिखते हैं, जैसे मन में उम्मीद के फूल खिलते हैं!
इसे बादल न ढक रखा है, और मुझे लोगों की खुशियों ने..
जैसे इसपे बदल बरसता है, वैसे मुझपे लोगों का प्यार !
इसने भी बहुत से राज छुपा रखे हैं, कुछ बातों को हम भी दिल में दबा रखे हैं,
इसमें भी अपार शक्ति है, मुझमें भी बहुत दम है, फिर भी हम दोनों ही शांत है!
इसे भी अपनी सीमा का आभास है, मुझे भी अपनी मर्यादा का एहसास है!
हाँ कभी इसमें भी तूफ़ान आते हैं, मैं भी तो कई बार फूट पड़ता हूँ न!
लहरें इसमें उठती गिरती रहती हैं, मुझे में भी विचार उठते गिरते रहते हैं,
दुनिया भर की गंदगी है इसमें भी, मुझमे भी बुराईयाँ कम तो नहीं हैं,
खजाने भी भर रखें हैं इसने, मुझमे भी तो कुछ बात है!
सूरज की आग से तपता है ये, दुःख में जलता हूँ कभी मैं भी,
चाँदनी से शीतल होता है, आंसू मेरे भी ठंडा रखते हैं मुझे,
फिर भी उन्मुक्त जीता है ये, मैं भी तो मदमस्त रहता हूँ...

Friday, June 17, 2011

इनका कोई धर्म नहीं है क्या?


ये जो सागर है इसका धर्म क्या है? ये किस धर्म के लोगों के लिए बना है? हम दूसरे धर्म के लोगों का छुआ नहीं खाते ना ही पीते, फिर हम एक ही नदी का पानी क्यूँ पीते हैं?

इस हवा का धर्म क्या है? एक ही हवा जो सबको छूती है उसी से सांस क्यूँ लेते हैं? ये हर धर्म के लिए अलग अलग होगी न? जैसे सब धर्मों ने अपने अपने नियम बना लिए हैं तो फिर इस हवा इस समुद्र इस आसमान का बंटवारा क्यूँ नहीं किया?
और हम जो अनाज सब्जी खाते हैं वो भी तो एक जमीन से ही निकलती है! क्या ये धरती का भी कोई धर्म नहीं? हो सकता है हम जो अनाज खा रहे हैं वो किसी दूसरे धर्म के किसान के खेत का हो! फिर तो हमारा धर्म भ्रष्ट हो जाना चाहिए न?
इन पंक्षियों का क्या धर्म है? ये तो सबके घर पे बैठते हैं! सबके लिए गीत गाते हैं!
अच्छा ये जो पेड़ पौधे हैं इनका तो कोई धर्म होगा ही! पर फिर ये सबके लिए फल क्यूँ देते हैं? सबको छाँव क्यूँ देते हैं? इनकी लकड़ी हर कोई कैसे प्रयोग कर लेता है? अलग अलग धर्म वाले अलग पेड़ क्यूँ नहीं इस्तेमाल करते?
चलिए मान लिया ये सब तो प्राकृतिक है इसलिए इनका धर्म नहीं है पर उन इंसानों का क्या जो सबके लिए घर बनाते हैं? जो सबके लिए कपडा सिलते हैं? उन किसानों का क्या जो सबके लिए अन्न उगते हैं?

इनका भी तो धर्म है, फिर ये लोग धर्म देख के काम क्यूँ नहीं करते? मुझे तो ये दुनिया समझ में ही नहीं आती... कभी धर्म का आडम्बर करते हैं पर अपने मतलब के लिए सब भूल जाते हैं..
अगर हम सच में किसी धर्म को मानते हैं तो फिर पूरा क्यूँ नहीं मानते?
और एक बात जब हम उस नदी का पानी पी सकते हैं जिसमे हर जाति और हर वर्ग के लोग नहाते और पानी पीते हैं तो फिर उनके साथ अच्छा व्यवहार क्यूँ नहीं कर सकते?

कोई मुझे कृपया बता दीजियेगा इन सबका धर्म क्या है जिससे की मैं अगली बार से सावधान रहूँ !

Thursday, June 16, 2011

काश तुम होते...


काश तुम पास होते, हम साथ जीते,
थोडा लड़ते, फिर एक दूजे पे हँसते,

काश तुम मेरे होते, हम हर पल जीते,
बिन के बात के भी हम बात किये करते,

काश तुम समझते, हम खुल के जीते,
तुम बैठे रहते, हम तुम्हे देखते ही रहते,

काश तुम रुक जाते, हम अकेले न जीते,
हाथ पकड़ एक दूजे का साथ में चलते....

काश तुम होते, ऐ काश तुम होते...

एक ख़ास सुबह !


सुबह तो रोज़ ही होती है एक जैसी सी,
पर आज की सुबह में न जाने क्या बात है,

आज हवा भी लग रही है कुछ अलग सी,
जैसे फिजा में उनकी खुशबु का एहसास है,

आवाज़ तो नहीं हुई, थी कुछ आहट सी,
जैसे उनके आते क़दमों की आवाज़ है,

फूल खिले हैं, बगिया लगती है सजी सी,
शायद आज उनके चहरे पे मुस्कराहट है,

ये दुनिया लग रही है आज रंगीन सी,
जैसे उन्होंने किया फूलों का श्रृंगार है,

चहचाहट भी आ रही बहुत प्यारी सी,
जैसे उनके कंठ में कोयल का वास है,

आज सुबह लग रही है कुछ ख़ास सी,
मिलने की उनसे फिर कुछ आस है !

Friday, June 3, 2011

बस ऐसे ही... फिर से !

उन्हें लगता है उन्हें भूल गए हैं हम,
उन्हें क्या पता है कैसे जी रहे हैं हम !


उन्हें लगता है उनसे बेवफा हो गए हैं हम,
उन्हें क्या पता खुद से खफा हो गए हैं हम !

उन्हें लगता है चाह कर उनसे दूर हो गए हैं हम,
उन्हें क्या पता दूरी से टूट के चूर हो गए हैं हम !

उन्हें लगता है उन्हें जाने से रोके नहीं हम,
उन्हें क्या पता कि कितनी बार हारे हैं हम !

उन्हें लगता है कि रातों को चैन से सोते हैं हम,
उन्हें क्या पता उनकी याद में कितना रोते हैं हम !

उन्हें लगता है उन्हें भूल जायेंगे कभी हम,
उन्हें क्या पता फिर कैसे जी पायेंगे हम !

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उन्हें बस लगता है और वो मान लेते हैं,
हम कहते भी हैं तो वो इनकार करते हैं !

Wednesday, June 1, 2011

पास है बस आस !

ज्यादा कुछ तो कहने को नहीं है मेरे पास,
पर अब भी बची है माफ़ी मिलने की आस !

सोचता हूँ उड़ कर आज आजाऊं मैं तेरे पास,
नहीं होता इंतज़ार, मिलने की है बहुत आस !

कुछ भी नहीं है तुझे देने के लिए मेरे पास,
बस थोड़ी खुशियाँ दे पाऊंगा ऐसी है आस !

मुझे लगता तो है की नहीं आओगी मेरे पास,
फिर भी तेरे लौटने की जगा राखी है आस !

तेरी यादों के सिवा कुछ भी नहीं है मेरे पास,
तेरे प्यार पे ऐतबार है, तभी तो है ये आस !

कहते है जब कुछ भी ना हो तुम्हारे पास,
फिर भी सब है अगर थोड़ी सी भी है आस !