Tuesday, April 19, 2011

हाथों की लकीरें !

कभी देखते हैं इन लकीरों को, कभी देखते हैं उन फकीरों को,
ढूँढते हैं हम अंतर लकीरों में, देखते हैं सिर्फ जिंदगियो में !
क्या मायने हैं इन लकीरों के, क्या ये आयने हैं गलतियों के,
सोचते हैं हम मंतर छुपे इनमे, देखते हैं सिर्फ अपने कर्मों में !

खींचते समय इन लकीरों को, खुदा ने भी क्या सोचा होगा,
इन तिरछी लकीरों में ही, शायद सबका भविष्य छिपा होगा !
देख तो सकेंगे अपने भविष्य को, फिर भी कुछ न पता होगा,
पर है सच बस इतना सा, सब अपने ही कर्मों का फल होगा !
याद दिलाती रहें खुदा की ये लकीरें ऐसा ही कोई संदेशा होगा,
पर इन लकीरों का विधाता, ये खुदा नहीं खुद इन्सां ही होगा !

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