Thursday, April 14, 2011

इश्क या शायरी

मैंने तो इश्क लिखा था, ना जाने इसे शायरी क्यूँ कहते हैं,
मैंने तो मोहब्बत की थी, ना जाने इसे दर्द क्यूँ समझते हैं !

रो रहे थे वो भी, रो रहे थे हम भी,
ज़माने को दिखाने हँस रहे थे तब भी,
ग़म उनको भी था, ग़म हमको भी,
न कह रहे थे वो ही, न कहे हम ही !

कोशिश तो बहुत की सब ठीक करने की, समय ने साथ न दिया,
जिस पे करते रहे सबसे अधिक ऐतबार, उसने भी हाथ न दिया !

वो बेवफा कैसे हो सकते हैं, जो मुझसे मोहब्बत किये ही नहीं,
क्या हुआ जो आज दूर हैं, हम कभी दिल से दूर किये ही नहीं !

क्या हुआ जो मैं पत्थर बन गया हूँ,
कभी मैं भी इंसान हुआ करता था,
अब दंगे में सर फोड़ने काम आता हूँ,
कभी मैं भी महलों में लगा करता था !

वो बगीचा ही क्या जिसमे फूल ना खिलें,
वो सपना ही कहाँ जिसमे सनम से ना मिलें !

जिन हवाओं में उड़ा करते थे कभी हम,
उसके भी मिजाज़ कुछ बदले से लगते हैं,
रोता मुझे देख, हँस के कहती है ये मुझसे,
सनम से तुम्हारे हम मिल तो सकते हैं !!!

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