Saturday, April 9, 2011

कसूर

कसूर न ही उनका है, कसूर न ही मेरा है,
हम उनकी आज़ादी नहीं समझे, वो मेरे गुलामी नहीं समझे,
कसूर न उनके दिल का है, कसूर न मेरी आँखों का है,
हम उनके दिल को नहीं समझे, वो मेरे आंसू नहीं समझे,
कसूर न उनकी चुप्पी का है, कसूर न ही मेरी आवाज़ का है,
हम उनकी ख़ामोशी नहीं समझे, वो मेरे लफ्ज़ नहीं समझे,
कसूर न मुलाकातों का है, कसूर न उन रातों का है,
हम उनकी महफ़िल नहीं समझे, वो मेरी तन्हाई नहीं समझे,
कसूर न उनके इस अंदाज़ का है, कसूर न मेरी सादगी का है,
हम उनके इनकार को नहीं समझे, वो मेरे ऐतबार को नहीं समझे,
कसूर न ही उनका है, कसूर न ही मेरा है,
हम खुद को काबिल नहीं समझे, वो मेरे प्यार को नहीं समझे !


सुझावों का खुले दिल से स्वागत है !

1 comment:

  1. कसूर इतना था की बेक़सूर थे हम...

    ReplyDelete