Friday, May 27, 2011

कुछ नहीं... बस ऐसे ही !

करने को कुछ नहीं, कहने को भी लफ्ज़ नहीं,
यादों का मौसम है, पर आँखें मेरी नम नहीं !

सोने का मन नहीं, रोने की भी इज़ाज़त नहीं,
चोट तो लगी है, पर इस ज़ख्म की मरहम नहीं,

पास मेरे कोई नहीं, आने की भी उम्मीद नहीं,
साथ तेरा याद है, पर अब और कोई भ्रम नहीं,

गलती मेरी कोई नहीं, तुमने भी गुस्ताखी की नहीं,
समय का फेर है, पर माफ़ी के लिए भी दम नहीं,

कुछ पाने की थी चाह नहीं, तुम भी मिले नहीं,
अब तो हम अलग हैं, पर खुशियाँ तेरी कम नहीं,

साथ अब तुम नहीं, खुशियाँ भी अब पास नहीं,
बेशक गम हैं, पर इन ग़मों का भी गम नहीं,

सब कुछ मिलता नहीं, खुदा नाइंसाफ भी नहीं,
सही ही हुआ होगा, पर ऐसे भी मेरे करम नहीं,

तुमसे कोई गिला नहीं, खुद से भी कुछ मिला नहीं,
यकीनन दर्द तुझे दिया है, पर इतने ज़ालिम हम नहीं,

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