Wednesday, May 4, 2011

कुछ तुकबन्दियाँ !

रास्ते तो खुद-ब-खुद बन जाते हैं,
जो दिल से अपने कदम बढ़ाते हैं !

लफ़्ज़ों की जरूरत तो उन्हें होती है,
जिनकी आँखें बेजुबान होती हैं !

शुक्रिया कहने को दिल कह रहा है,
अपनों से कहने से कुछ डर रहा है!

जो उन्हें मेरो लफ़्ज़ों पे यकीन न था,
तो काश मेरी आँखों को हो पढ़ लेते !

अलफ़ाज़ खूबसूरत नहीं होते जनाब,
उनसे जुड के सुन्दर हो जाते हैं साब !

उन्हें कहीं कमी ना हो मेरे प्यार की,
ये सोचकर खुद से नफरत कर ली मैंने !

सुना है ऊँचा सोचने वाले ही ऊँचे जाते हैं,
और आगे बढ़ने वाले ही इश्क कर पाते हैं !

ज़माने बदल जाते हैं, लोग बदल जाते हैं,
बदलने को तो यहाँ अब यार बदल जाते है !

गर बुलंद हो हौसले तो क्या ज़मीन क्या आसमान,
ठान लो अगर करना तो क्या कठीन क्या आसान !

चीज़ें तो वहीँ होती हैं, शामें भी रोज होती हैं,
कुछ खास होती हैं वो, जिनमे उनकी बात होती हैं !

न जाने क्यूँ लोग शायर कहते हैं, हम तो इश्क लिखते हैं,
न जाने क्यूँ लोग पागल कहते हैं, हम तो इश्क करते हैं !!!

अपनों का कुछ चुराया नहीं जाता, हाँ उनपे तो हक जमाया जाता है,
दिल चुराने के बाद अपना बनाया नहीं जाता, बस अपनाया जाता है !

मैं कोशिश तो बहुत करता हूँ लिखने कि, दिल इज़ाज़त नहीं देता,
शायद डरता है मेरी लेखनी से, ये दिल खुद ही सब है लिख देता !!!

साब इश्क करके मज़ा तब आता है, जब लोग पूछते हैं की सच्चा है?
और इश्क लिखके मज़ा तब आता है, जब लोग पूछते हैं तुमने लिखा है?

No comments:

Post a Comment