Thursday, June 16, 2011

एक ख़ास सुबह !


सुबह तो रोज़ ही होती है एक जैसी सी,
पर आज की सुबह में न जाने क्या बात है,

आज हवा भी लग रही है कुछ अलग सी,
जैसे फिजा में उनकी खुशबु का एहसास है,

आवाज़ तो नहीं हुई, थी कुछ आहट सी,
जैसे उनके आते क़दमों की आवाज़ है,

फूल खिले हैं, बगिया लगती है सजी सी,
शायद आज उनके चहरे पे मुस्कराहट है,

ये दुनिया लग रही है आज रंगीन सी,
जैसे उन्होंने किया फूलों का श्रृंगार है,

चहचाहट भी आ रही बहुत प्यारी सी,
जैसे उनके कंठ में कोयल का वास है,

आज सुबह लग रही है कुछ ख़ास सी,
मिलने की उनसे फिर कुछ आस है !

2 comments:

  1. वाह! अद्भुत सुन्दर रचना! कमाल की पंक्तियाँ! शानदार और ज़बरदस्त प्रस्तुती!

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  2. @ संजय भास्कर जी: बहुत बहुत धन्यवाद ! आपने पढ़ा, सराहा और मेरा मनोबल बढाया !
    कोटि कोटि धन्यवाद पुनः से !

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