Monday, September 26, 2011

अपना शहर ?

एक अजीब सी कश्म-कश में उलझा हुआ हूँ,
तुझसे मिलने निकला, राह में भटका हुआ हूँ,
क्यूँ फ़ना नहीं होने देता मुझे तुझमें ऐ शहर,
तुझे हँसता देखने को ज़माने से तरसा हुआ हूँ !!7!!
-बजाज

कुछ डर सा लगता है, भागता फिर रहा हूँ,
अजीब सी उलझन है, बच के निकल रहा हूँ,
गलत हूँ, पर हो सके तो मुझे माफ़ करना ऐ शहर,
अब खुदसे तुझे, तुझसे खुद को जुदा कर रहा हूँ !!6!!
-बजाज

यूँ शर्म से झुका के यहाँ नज़रें, हम चलते हैं,
बहुत डरते डरते अब हम अपनों से मिलते हैं !
कुछ तो नाराज़गी है तुझे मुझसे ऐ शहर,
अपने ही शहर में हम आज गैरों से फिरते हैं !!5!!
-बजाज

तेरी गलियों में कभी बेख़ौफ़ घूमा करते थे,
नज़रें चुराते फिर रहे हैं अभी उन्हीं से हम,
कभी ललचते थे मिलने तुझसे ऐ शहर,
आज रहते हैं तुझसे ही जी चुराते से हम !!4!!
-बजाज

यूँ तो तुझसे मिलने के इंतज़ार में हम तड़पते रहे,
जब मिलने की घडी आई, हम खुद से ही बचते रहे !
ऐ हमनवां, ऐ शहर, ऐसी भी क्या हुई खता हमसे,
सजा-ऐ-आफता हम अपने ही शहर में मुसाफिर से रहे !!3!!
-बजाज


जो कभी मेरा भी हुआ करता था, आज बेगाना सा लगता है,
छूटे कुछ महीने ही हुए अभी तो, कई ज़माना सा लगता है !
बड़ी शान से मैं ज़माने भर से कहता आया कि वो मेरा है,
आज फिर अपना ही शहर क्यूँ मुसाफिरखाना सा लगता है !!2!!
-बजाज

तेरे शहर हम आ भी गए तो तेरे दर पे न आयेंगे,
तेरे दर भी जो आ गए हम नज़रें न मिला पायेंगे !
नज़रें तो नादान हैं, ये गर मिल भी गयीं तो भी,
यकीन करना हम वहीँ कई मौत मर मर जायेंगे !!1!!
-बजाज

...(many more still awaited..)

1 comment:

  1. बहुत अच्छा लिखा है आपने, यदि Line Breaks और दे देते तो हम जैसों को पढने में ज्यादा आसानी होती.
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