Thursday, September 22, 2011

एक सच, एक चेतावनी...

जायज़ ही है, तेरी शिकायतों का ये ढेर मुझसे,
इस सबक के बाद बहुत उम्मीद न करना मुझसे,
यूँ दगा दिया है दोस्त तेरा तुझको बिना वजह के,
पर मैंने भी तो धोखा खाया है कई बार खुद ही से !!

हर गुनाह धुल नहीं जाते एक माफ़ी माँगने से,
ज़ख्मों के घाव भर नहीं जाते आंसू बहाने से,
न जाने क्या मिलता है हमें दूसरों को रुला के,
हम दोस्ती निभाते नहीं बस तेरे चाहने से !!
-बजाज

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