Sunday, July 24, 2011

एक खिलती कली !

वाह ! आज देखी तेरी दरिया दिली,
दुश्मन से भी तू दोस्त जैसे मिली !

यहाँ तूफान में उजड़ रहे थे हम,
वहां तेरे पास तो हवा भी न चली !

मेरे जाते ही तुमको वो सुकून मिला,
मानो कितनी बड़ी कोई बला टली !

गुलशन के इंतज़ार में बैठे थे हम,
कुचल दी तुमने वो एक खिलती कली !

No comments:

Post a Comment