Tuesday, July 19, 2011

न जाने क्यूँ !


मैं भी कभी खुल के जीना चाहता था,
साथ सबके हंसने की चाह रखता था,

खुश करने की सबको कोशिश करता था,
दिल से सबसे मैं हरदम मिला करता था,

झूठ कहने से मैं बचा करता था,
सच कहने से न कभी डरता था,

कुछ सपने मैं भी देखा करता था,
कुछ करने की तमन्ना रखता था,

न जाने कहाँ खो गया है सब,
न जाने क्यूँ बदल गया मैं अब !

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