बहुत समझा लिए दिल को,
दिल मान भी जाता है,
फिर जिद शुरू कर देता है,
अब कुछ समझाने का भी
मन नहीं करता,
बहुत कोशिश कर ली,
हार नहीं मानता था मैं,
पर अब हारना ही ठीक लगता है,
अब कुछ जीतने का भी,
मन नहीं करता,
बहुत रो लिया है मैं,
कभी नहीं बहाता था आंसू,
पर अब रोना ही ठीक लगता है,
अब तो हँसने का भी,
मन नहीं करता,
बहुत बाँट लिए गम,
कभी सिर्फ ख़ुशी बांटता था,
पर अब चुप रहना ही ठीक लगता है,
अब तो बांटने का भी,
मन नहीं करता,
बहुत सुन लिए भाषड़,
कभी खुद ही दिया करता था,
पर अब तो दूर रहने ही ठीक लगता है,
अब तो सुनने का भी,
मन नहीं करता,
बहुत मांग लिए दुआ,
कभी कुछ भी नहीं मांगते थे,
अब तो न पाना ही ठीक लगता है,
अब तो माँगने का भी,
मन नहीं करता !
अब किसी चीज़ में भी मेरा मन नहीं लगता ...
दिल मान भी जाता है,
फिर जिद शुरू कर देता है,
अब कुछ समझाने का भी
मन नहीं करता,
बहुत कोशिश कर ली,
हार नहीं मानता था मैं,
पर अब हारना ही ठीक लगता है,
अब कुछ जीतने का भी,
मन नहीं करता,
बहुत रो लिया है मैं,
कभी नहीं बहाता था आंसू,
पर अब रोना ही ठीक लगता है,
अब तो हँसने का भी,
मन नहीं करता,
बहुत बाँट लिए गम,
कभी सिर्फ ख़ुशी बांटता था,
पर अब चुप रहना ही ठीक लगता है,
अब तो बांटने का भी,
मन नहीं करता,
बहुत सुन लिए भाषड़,
कभी खुद ही दिया करता था,
पर अब तो दूर रहने ही ठीक लगता है,
अब तो सुनने का भी,
मन नहीं करता,
बहुत मांग लिए दुआ,
कभी कुछ भी नहीं मांगते थे,
अब तो न पाना ही ठीक लगता है,
अब तो माँगने का भी,
मन नहीं करता !
बहुत लिख लिए लेख,
कभी अच्छा लिखा करते थे,
अब तो न लिखना ही ठीक लगता है,
अब तो आगे लिखने का भी,
मन नहीं करता !
अब किसी चीज़ में भी मेरा मन नहीं लगता ...
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