चलो गोरखपुर चलें,
चलो अपनी माटी पे खेलें,
चलो गोरखपुर चलें,
कुछ न कुछ वहां कर ही लेंगे,
थोड़े से ही पेट भर भी लेंगे,
भले ही सुट्टे की गुमटी खोलनी पड़े,
चाहे चाट का ठेला ठेलना पड़े,
या पान की पीक के बगल में बैठें,
चाहे राबड़ी पचास ग्राम तौलें,
चलो गोरखपुर चलें,
चलो अपनी माटी पे खेलें,
नौकरी छोटी भी चलेगी,
छोकरी मोटी भी चलेगी,
गरम चाय की चुस्की बाँटें,
चाहे गणेश में सब्जी काटें,
भले ही कपड़े के थान को सरपट समेटें,
चाहे बरफ के गोले पर शरबत लपेटें
चलो गोरखपुर चलें,
चलो अपनी माटी पे खेलें,
चलो गोरखपुर चलें,
चलो न अब गोरखपुर चलें ...
-बजाज
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