बचपन में पढाई का बोझ !
थोड़े बड़े हुए रुपयों का बोझ !
थोडा और बड़े हुए, करियर का बोझ !
और बड़े हुए जिम्मेदारियों का बोझ !
फिर थोड़े और बड़े हुए तो परिवार का बोझ !
और बड़े हुए समाज का भी बोझ !
इन बोझों को उठाते उठाते बहुत से पाप किये, बहुत से हुए!
अब बूढ़े हो गए तो अपने ही पापों का बोझ !
क्या इंसान एक मजदूर है ?
थोड़े बड़े हुए रुपयों का बोझ !
थोडा और बड़े हुए, करियर का बोझ !
और बड़े हुए जिम्मेदारियों का बोझ !
फिर थोड़े और बड़े हुए तो परिवार का बोझ !
और बड़े हुए समाज का भी बोझ !
इन बोझों को उठाते उठाते बहुत से पाप किये, बहुत से हुए!
अब बूढ़े हो गए तो अपने ही पापों का बोझ !
क्या इंसान एक मजदूर है ?
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