ज्यादा कुछ तो कहने को नहीं है मेरे पास,
पर अब भी बची है माफ़ी मिलने की आस !
सोचता हूँ उड़ कर आज आजाऊं मैं तेरे पास,
नहीं होता इंतज़ार, मिलने की है बहुत आस !
कुछ भी नहीं है तुझे देने के लिए मेरे पास,
बस थोड़ी खुशियाँ दे पाऊंगा ऐसी है आस !
मुझे लगता तो है की नहीं आओगी मेरे पास,
फिर भी तेरे लौटने की जगा राखी है आस !
तेरी यादों के सिवा कुछ भी नहीं है मेरे पास,
तेरे प्यार पे ऐतबार है, तभी तो है ये आस !
कहते है जब कुछ भी ना हो तुम्हारे पास,
फिर भी सब है अगर थोड़ी सी भी है आस !
पर अब भी बची है माफ़ी मिलने की आस !
सोचता हूँ उड़ कर आज आजाऊं मैं तेरे पास,
नहीं होता इंतज़ार, मिलने की है बहुत आस !
कुछ भी नहीं है तुझे देने के लिए मेरे पास,
बस थोड़ी खुशियाँ दे पाऊंगा ऐसी है आस !
मुझे लगता तो है की नहीं आओगी मेरे पास,
फिर भी तेरे लौटने की जगा राखी है आस !
तेरी यादों के सिवा कुछ भी नहीं है मेरे पास,
तेरे प्यार पे ऐतबार है, तभी तो है ये आस !
कहते है जब कुछ भी ना हो तुम्हारे पास,
फिर भी सब है अगर थोड़ी सी भी है आस !
क्या बात है. भावों के अद्भुत उद्गार.
ReplyDeleteसंजय भास्कर जी: बहुत बहुत धन्यवाद !
ReplyDeleteआपने रचना को समझा उसके भावों को पढ़ा और महसूस किया !
ऐसे पाठक बहुत ही कम होते हैं ! बहुत बहुत शुक्रिया...